दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक हड़ताल पर, अधिकार रैली में हुए शामिल
विश्वविद्यालय के परिसर में डूटा द्वारा बुलाई गयी ‘अधिकार रैली’ में आज करीब एक हजार से ज्यादा शिक्षकों ने भागेदारी की और एम.एच.आर.डी. द्वारा घोषित शिक्षा-विरोधी और जन-विरोधी आदेश के खिलाफ अपने आक्रोश और गुस्से का प्रदर्शन किया. रैली में शामिल हुए प्रदर्शनकारी शिक्षकों ने 5 मार्च-2018 को यूजीसी द्वारा जारी अधिसूचना को मुख्य तौर पर चिंतनीय मानते हुए निशाना बनाया, जो न केवल संविधानिक प्रस्तावनाओं की अवहेलना करते हुए वर्तमान आरक्षण नीति में एक भारी “यू-टर्न” को निर्देशित करता है बल्कि जिसने विश्वविद्यालय में जारी नियुक्ति प्रक्रिया को भी अधर में लटकाने का काम किया है. डूटा ने 5 मार्च-2018 को यूजीसी द्वारा जारी इस आदेश को बिना शर्त वापस लिए जाने की मांग की है, साथ ही डूटा ने सरकार से इस सन्दर्भ में न्यायालय में पुनर्याचिका दाखिल करने और इस मसले को संसदीय समिति को हस्तांतरित करने की भी मांग की. इसी के साथ डूटा ने यह मांग भी की, कि विश्वविद्यालय प्रशासन को विज्ञापित पदों के लिए पहले से मौजूद आरक्षण रोस्टर के ही तहत नियुक्तियों को करने की अनुमति मांगनी चाहिए, ताकि वर्षों से लंबित अस्थायी और तदर्थ शिक्षकों के स्थायीकरण/ नियुक्ति-प्रक्रिया को पूरा किया जा सके.
एमएचआरडी द्वारा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हालफिलहाल जो नितिगत बदलाव किये गये हैं और उसका समाज पर पड़ते हुये दुष्प्रभाव को जानकर और सुनकर लोग सकते में थे।
वित्तपोषण का ३०:७० का नया सूत्र जिसके अनुसार विश्वविद्यालयों को अतिरिक्त सँसाधनों को जुटाने के लिये कम से कम ३० प्रतिशत राशि का इन्तेजाम खुद करने के लिये कहा गया है परिणाम स्वरुप छात्रों की फीस में अत्यधिक बृद्धि होगी जिसकी वजह से छात्रों के लिये उच्च शिक्षा हासिल करना दूर की कौड़ी होगी विशेषकर महिलाओं और वँचित तबके के लिये।
जिस तरह से सरकारी वित्तपोषण की जगह हेफा के अन्तर्गत अतिरिक्त सँसाधनों को जुटाने के लिये लोन आधारित वित्तपोषण विधि को अपनाया गया है उसके नतीजे खतरनाक होंगे:
या तो सँस्थान दुर्बल होंगे जिससे सँस्थानों की गुँणवत्ता प्रभावित होगी या अतिरिक्त सँसाधन मुहय्या कराने के लिये सारा वित्तिय बोझ छात्रों पर पड़ेगा।
श्रेणीबद्ध स्वायत्ता की वजह से सरकारी सँस्थानों में विभिन्न स्तरों पर सरकार द्वारा स्ववित्तपोषण और ब्यापारिकरण को सम्मिलित किया जायेगा।
लोगों को बताया गया विश्वविद्यालय में किस तरह से सरकार शिक्षकों की पदोन्नति और नियुक्ति के मामले में उदासीनता बनाये हुये है।आज विश्वविद्यालय में पढ़ा रहे ६० प्रतिशत शिक्षक तदर्थ रूप में कार्य कर रहे हैंः
शैक्षिक ब्यवसाय में प्रगति न होने की वजह से प्रतिभा पलायन होने का खतरा उत्पन्न हो गया है। स्थायी नौकरी और सुनिश्चित ब्यवसाय प्रगति की तलाश में सँस्थानों के होनहार छात्र अन्य क्षेत्रों की नौकरियों में पलायन कर रहे हैं।
किसी भी मजबूत विकासशील देश के लिये उच्च शिक्षा ऋढ़ की हड्डी के समान है जो की आज सरकारी नितियों की शिकार हो रही है।इस बात को जानकर लोग हतप्रभ थे। लोगों ने शिक्षकों और छात्रों के प्रति अपनी एकजुटता दिखाई और सरकारी वित्तपोषित सँस्थानों को बचाने की मुहिम में साथ देने की शपथ ली।
डूटा आने वाले दिनों में सरकार की शिक्षा विरोधी नितियों के खिलाफ आन्दोलन को और पुख्ता तरिके से आगे बढ़ायेगी।डूटा समाज के सभी वर्गों से एकीकृत होकर आन्दोलन में भाग लेने की अपील करती है।
भवदीय
राजीब रे
अध्यक्ष, DUTA | विवेक चौधरी सचिव, DUTA |
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